भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारत के पुकार / मनीष कुमार गुंज

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:24, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुप-चाप रहो हो भाय
लागै छै सीमा पे पुकारै-2
हमरो भारत माय, जरा चुप-चाप रहो हो भाय।

चीन के मोहलत तीन दिन
के जखनी ठोंकबै ताल
लंका दहन करलकै जेना
ओन्है करबै छाय, जरा चुप-चाप रहो हो भाय।

पाक के नीयत पाक कहां छै
रोज करै तकरार
एक दफा सपरी जैबै ते
जैतै पाक बिलाय, जरा चुप-चाप रहो हो भाय।