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इज़्ज़तपुरम्-55 / डी. एम. मिश्र
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अँधेरे में ऊँचे
सम्बोधनों से लद जायें
पनाले जैसे जिस्म
हमाम में धुले
नथुने
न भींगे यहाँ
पर-स्वेद में
गंदे अधर हों
पवित्र हर की पौड़ी
जाने जिगर
जानेमन
मेरीजान
दोगले
बेजान
शब्दनामा छोड़कर
निज नारियों का देह
लार टपकाते
आ फाट पड़ते हैं
अंधे कुएँ में