भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुकरियाँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 19 सितम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीटी देकर पास बुलावै।
रुपया ले तो निकट बिठावै॥
लै भागै मोहि खेलहिं खेल।
क्यों सखि साजन, नहिं सखि रेल॥

सतएँ-अठएँ मा घर आवै।
तरह-तरह की बात सुनावै॥
घर बैठा ही जोड़ै तार।
क्यों सखि साजन, नहीं अखबार॥