भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज़ादी / हुम्बरतो अकाबल / यादवेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 22 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हुम्बरतो अकाबल |अनुवादक=यादवेन्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चील, बाज और कबूतर
उड़ते-उड़ते
बैठ कर सुस्ताते हैं
गिरजों और महलों पर

बेख़बर, बेपरवाह
बिलकुल उसी तरह
जैसे
वे बैठते हैं चट्टानों पर
वृक्षों पर ...या ऊँची दीवारों पर...

इतना ही नहीं
वे उनपर गिराते हैं
पूरी आजादी से अपनी बीट भी

उन्हें मालूम है
कि ख़ुदा और इन्साफ़
दोनों का ताल्लुक
ऊपरी दिखावे से नहीं
दिल से है...।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र