भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुरंगी छींट की खाल में / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेजी ग्रोवर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नाव को खेते, तैरते, बादल और धूप। आज मैं कुछ नहीं होना चाहता; कल देखेंगे।
— जॉर्ज सेफ़ेरिस
बहुरंगी छींट की खाल में रुई का भेड़िया। बड़ा है हाँड-माँस के आकार से। छोटे-छोटे दाँत निपोरे भागा आता है सीढ़ी-दर-सीढ़ी आँगन के पार से। लपकता है मुझपर रुई की पूरी लोच से। फिर तुम पर भागा आता है सीढ़ी के छोर से।
मैं मुस्कराते हुए उठ बैठती हूँ स्वप्न से
पहली बार जीवन में।