भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपनों को… / लैंग्स्टन ह्यूज़
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:21, 8 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=लैंग्स्टन ह्यूज़ |संग्रह=आँखे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
|
सपनों को कसकर पकड़ रखो
क्योंकि अगर सपने मर गए
तो जीवन है टूटे परों वाली एक चिड़िया
जो उड़ नहीं सकती
सपनों को कसकर पकड़ रखो
क्योंकि सपनों के बग़ैर
जीवन है एक बंजर खेत
बर्फ़ से ढँका हुआ।
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : राम कृष्ण पाण्डेय