भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाब / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 9 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैंने सोचा था कि ख़्वाबों में तुझे पा लूँगा,
ज़िंदगी ख़्वाब बना दी मैंने।
तू मगर सबसे बड़ा सच निकली,
ज़िंदगी ख़्वाब थी, फिर ख़्वाब रही।
ख़्वाब और सच के दरम्यान कभी,
मैं तसव्वुरात के पुल बाँधूँगा।
न सही तू, कि तेरा अक़्स सही,
तुझको यादों में कहीं पा लूँगा।