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चुनरी / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता
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चलो ओढ़ तुम्हारी याद की चुनरी
सजँू-सँवरू ँ,
ज़रा मेहँदी लगा लूँ
चलो कंगन पहन लूँ
और गालों पर कहीं
काजल का छोटा सा
तिल बना लूँ,
चलो फिर रात आने को है
झाकूँ आईने में
मुसकरा लूँ
जब जाओ ख़्वाब में तुम
तुम्हें ढक लूँ,
मचलती ज़ुल्फ़ में
तुमको छुपा लूँ
कर लूँ क़ैद आँखों में
तुम्हें तुमसे चुरा लूँ।