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गर्द / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता

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ज़रा सी गर्द में दब गई है कहानी तेरी
ज़रा सी बर्फ़ में छिप गया रिश्ता अपना,
ज़रा सी आँच तो बाक़ी है तेरी साँसों में
ज़रा आग़ोश में ले लूँ तुझे, धुआँ तो उठे
ज़रा सा होश है और है ज़रा सी मदहोशी
ज़रा सा शोर धड़कनांे में ज़रा सी ख़ामोशी,
ज़रा सा पिघला हुआ चाँद ज़रा बुझता हुआ
ज़रा सी रौशनी में नहाई-सी ये तन्हा रात
ज़रा क़रीब आ, दोस्त और ज़रा सा क़रीब
ज़रा ठहर जा कि मैं पिरो लूँ तुझे ल़फ़्जों में
ज़रा समेट लूँ ख़शबू तेरी और ज़रा जी लूँ
ज़रा सी याद तेरी लिख लूँ हाशियों पे कहीं।