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इशारा / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
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मुझको हौले से समझा रही है,
एक आवाज़-सी आ रही है।
रात ने लिख लिये जब नए ख़्वाब
फिर, तेरी याद क्यों आ रही है?
दिन गया, शब गई, मुझको सोना है फिर,
तेरी तसवीर क्यों गा रही है?
नई राह तय की थी मैंने वो फिर,
तेरे नज़दीक क्यों जा रही है?
और सूरज ने क्यों ये कहा चाँद से,
रोशनी क्यों वहाँ जा रही है?
जहाँ से इशारों में रह-रह के तू,
फिर मुझको बहका रही है।
चाँद क्यों चुप रहा, मैंने क्या कह दिया,
चाँदनी अपने घर जा रही है।