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इब्तिदा / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
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इश्क़ की इब्तिदा कीजिए
आप ही कुछ बयाँ कीजिए,
हमको दिल मंे सजा लीजिए
हम को बस ये सज़ा दीजिए,
आप हम से ख़फ़ा ही सही
दिल-ही-दिल में वफ़ा कीजिए,
ख़्वाब कोई दिखा दीजिए
फिर ज़मीं आसमाँ कीजिए,
भूलकर फिर जो याद आएँ हम
हमको फिर से भुला दीजिए,
लिखिए-लिखिए मेरे नाम ख़त
और लिखकर जला दीजिए,
दर्द की इंतिहा कीजिए
अश्क ही कुछ बहा दीजिए,
आप ही ने दिए ज़ख़्म तो
आप ही अब दवा कीजिए,
बेख़ुदी में जो ख़ुद से मिलें
तो हमें हमनवाँ कीजिए,
अब जिएँ या मरें क्या करें
आप ही फ़ैसला कीजिए।