भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतनी कड़वी, कि पी नहीं जाती / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 10 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इतनी कड़वी, कि पी नहीं जाती
और तौबा भी की नहीं जाती,
साँस लेना भी जुर्म है गोया
ज़िंदगी है, कि जी नहीं जाती,
एक ठहरा हुआ सफ़र हूँ मैं
इक सड़क जो कहीं नहीं जाती,
रात भर दिल मेरा जलाती है
चाँदनी अपने घर नहीं जाती,
कोई तसवीर नहीं, तू भी नहीं
बस तेरी याद है, नहीं जाती।