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फिर तसव्वुर में वही नक़्श / साग़र पालमपुरी
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फिर तसव्वुर में वही नक़्श उभर आया है
सुबह का भूला हुआ शाम को घर आया है
जुस्तजू है मुझ अपनी तो उसे अपनी तलाश
मेरा साया ही मुझे ग़ैर नज़र आया है
यह मेरा हुस्न—ए—नज़र है के करिश्मा सका
ज़र्रे—ज़र्रे में मुझे नूर नज़र आया है
उसकी लहरों पे थिरकता है तेरा अक़्स—ए—जमील
वो जो दरया तेरे गाँओं से गुज़र आया है
हिज्र की रात! नया ढूँढ ले हमदम कोई
मैं तो चलता हूँ मेरा वक़्त—ए—सफ़र आया है
जब हुई उनसे मुलाक़ात अचानक ’साग़र’!
इक सितारा—सा नज़र वक़्त—ए—सहर आया है