भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेसहारों के मददगार हैं हम / साग़र पालमपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 21 जून 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेसहारों के मददगार हैं हम

ज़िंदगी ! तेरे तलबगार हैं हम


रेत के महल गिराने वालो

जान लो आहनी दीवार हैं हम


तोड़ कर कोहना रिवायात का जाल

आदमीयत के तरफ़दार हैं हम


फूल हैं अम्न की राहों के लिए

ज़ुल्म के वास्ते तलवार हैं हम


बे—वफ़ा ही सही हमदम अपने

लोग कहते हैं वफ़ादार हैं हम


जिस्म को तोड़ कर जो मिल जाए

ख़ुश्क रोटी के रवादार हैं हम


अम्न—ओ—इन्साफ़ हो जिसमें ‘साग़र’!

उस फ़साने के परस्तार हैं हम