भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदासी के महीनों में / टोमास ट्रान्सटोमर
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:10, 17 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर |संग्रह= }} <Poem> उद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उदासी के महीनों में
केवल तुमसे प्यार करते समय ही
खुशी झिलमिलाई जीवन में
जैसे जुगनू जलता है और बुझता है, जलता है और बुझता है
और इन झलकियों में
अँधेरे में भी हमें पता चल जाता है
जैतून के पेड़ों के बीच उसकी उड़ान का
उदासी के महीनों में आत्मा सिमटी पड़ी रही, बेजान
मगर देह गई सीधे तुम्हारे पास
गरजता रहा रात में आकाश
चोरी-चोरी हमने दुह लिया ब्रह्माण्ड को
और बचे रहे
(अनुवाद : मनोज पटेल)