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अलौकिक थी पहली छुअन / सुरेश चंद्रा

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अलौकिक थी
पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य में

अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
अनुबंध मात्र रह गये

अतृप्तता के अरण्य से
उकताहट की ऊभ-चूभ में
विलुप्त होते हुये

एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम में
प्रेम के अपराधी हो चुके थे.