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मुंबई : कुछ कविताएँ-4 / सुधीर सक्सेना
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यहाँ समुद्र
चुटकी भर नमक
रोज़ डाल देता है
मौसम की जेब में
इमारतों पर,
चिमनियों पर,
शहर के वक्ष पर,
एक साथ धीरे-धीरे
झरता है नमक
चुटकी भर नमक
रोज़-ब-रोज़ रिसता है
लाखों मानुषों की देह से
चुटकी भर नमक का रिश्ता है
मुम्बई और समुंदर के बीच