भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूकम्प : कुछ कविताएँ-3 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 21 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=समरकंद में बाबर / सुधीर सक्सेना }...)
जहाँपनाह!
मौत ने
कब किस से
मांगी है पनाह
कि वो आए तो
आपको बताकर आए
एक ही रास्ता है
कहर से बचने का
कि छेंक दें उसके
आने के सारे रास्ते
और खिलवाड़ न करें
धरती की नेमतों से
अन्यथा वह फिर-फिर आएगी
मगर,
बताओ तो चित्रगुप्त!
किसके खाते में लिखोगे
यह गुनाह
कि जलजला आया
और मारे गए हज़ारों बेगुनाह?