भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत लिखूँ / प्रीति समकित सुराना
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रीति समकित सुराना |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे दिल में इक चाहत है,आज नया सा गीत लिखूँ।
मुखड़े में लिख नाम तुम्हारा, बन्द-बन्द मनमीत लिखूँ।
रोज गली में छुपकर आना,मेरी एक झलक की खातिर,
देख तुझे मेरा छुप जाना,तुझको तकना धीरे से फिर,
आखिर नजरों के मिलने को, हार लिखूँ या जीत लिखूँ,
मुखड़े में लिख नाम तुम्हारा, बन्द-बन्द मनमीत लिखूँ।
नजरों के यूंही मिलने से,दिल ने दिल से नाता जोड़ा,
लाख मनाया मैंने दिल को, फिर भी सीमाओं को तोड़ा,
दिल से दिल ही जोड़ लिए तो, प्रीति भरी यह रीत लिखूँ,
मुखड़े में लिख नाम तुम्हारा,बन्द-बन्द मनमीत लिखूँ।