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खत नहीं आया / जय चक्रवर्ती

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खत नहीं आया बहुत दिन से
किसी का खत नहीं आया

खत कि जिनमे
स्नेह की
सौगात होती थी
मनाने की-
रूठने की
बात होती थी
ज़िन्दगी की राह के ये मीत
किसने इन्हें भरमाया !

खत कि जो
दुख-सुख
अकेले मे बंटाते थे
हम उन्हें सुनते
कभी
हम भी सुनाते थे
इस मधुर –अनुबंध पर
किसकी न जाने पड़ गई छाया !

भोगने को रह गए
अब
शब्द कुछ छूंछे
नेह-सीझे
अक्षरों का
कौन दुख पूछे
डस गई ‘राजी-खुशी-
शुभकामना‘ सब ‘हेलो’ की माया