भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तकली-सा जीवन / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय चक्रवर्ती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नाच रहा है एक कील पर
तकली-सा जीवन
पता नहीं कब बचपन बीता
कब बीता यौवन
कद से छोटी रही
गृहस्थी की
हरदम चादर
सर ढकने पर
पाँव खुल गए
पाँव ढके तो सर
आँखों की नींदों से अक्सर
रोज़ चली अनबन
रहा उम्र-भर
सरकारी-नौकर होने
का भ्रम
मगर अभावों की
सत्ता
हर वक़्त रही कायम
गर्म तवे पर पानी की -
छींटों जैसा वेतन
मई-जून के सूरज-सा
दुख
सर पर रोज़ तपा
आस्तीन के साँपों ने
मेरा ही
नाम जपा
खुशियाँ आई हिस्से
जैसे कोटे का राशन