भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हें देखकर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हें देखकर
फूले नहीं समाते, सजनी
दिन वसंत के
महुआ फूला
नीम-आम दोनों बौराये
बरगद पर दिन-भर
तोता-मैना बतियाये
सँग पत्तों के
मादल-चंग बजाते, सजनी
दिन वसंत के
भरी-दुपहरी
सुनो, रात की रानी फूली
धूप रात-भर जगी
नियम वह भी है भूली
अचरज कैसा -
ऐसे ही बौराते, सजनी
दिन वसंत के
उपजा गीत -
हवा ने उसको जी-भर गाया
हठी तुम्हारी
मीठी चितवन की है माया
जादू उसका
फिरते उधम मचाते, सजनी
दिन वसंत के