भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही पुरानी पगडंडी यह / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वही पुरानी
पगडंडी यह
जिस पर हम-तुम साथ चले थे
बरसों पहले की यह घटना
नये हुए थे इन्द्रधनुष हम
सपने थे तब ओस-भिगोये
साँसें भी थीं मीठी पुरनम
हमने जो सँग
रची सुबह थी
उसके अनुभव सभी भले थे
पाँव-पाँव हमने नापी थी
जहाँ सूर्य रहता
वह घाटी
जहाँ चाँद ने बोई पूनो
छूकर देखी हमने माटी
पर्वत पर थे
चढ़े संग हम
ढालों पर सँग-सँग फिसले थे
कभी नदी का बहना देखा
बैठे कभी झील के तट पर
बाँच हठी रोमांस हमारा
खूब हँसे थे पुरखे पत्थर
थके हुए
बूढ़े सैलानी
देख हमारा पर्व जले थे