भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरसों फूली उधर खेत में / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 30 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरसों फूली उधर खेत में
        इधर तुम्हारी कनखी भी
                 दिन वसंत के
 
उत्तर से आये हैं पंछी
किसिम-किसिम के
कमल-ताल में
कौंध रहे पल प्रथम दृष्टि के
और छुवन के
फिर ख़याल में
 
आओ, सखी, साथ बैठें हम
      बात करें कुछ मन की भी
                 दिन वसंत के
 
धुंध छंटे सब
साँसों में
आकाशकुसुम की गंध भरी है
धूप सुनहरी- सँग गौरइया
आँगन में छत से उतरी है
 
खबरें लाई हैं कविताएँ
       नदी-पार जंगल की भी
                 दिन वसंत के
 
ताल किनारे
घाट पूजती
दिखीं गाँव की कन्याएँ भी
सीधी-सच्ची बच्चों जैसी
ऋतु की सारी इच्छाएँ भी
 
ठुमरी गातीं मिली हवाएँ
        फाग गा रही छुटकी भी
                 दिन वसंत के