भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात बीते हम न होंगे / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:30, 30 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम न होंगे
तो हुआ क्या
ये हमारे गीत तो होंगे
फूल होने की कथा
हमने कही है
वह रहेगी
नदी सिरजी नेह की
वह भी बहेगी
हम न होंगे
ये हमारे गीत गाते
मीत तो होंगे
चाँदनी की सेज होगी
या कि
तारों-भरी पूरी रात होगी
पीर भी ज़िंदा रहेगी
जोकि हमने साथ भोगी
हम न होंगे
ये हवाओं के
मधुर संगीत तो होंगे
याद में डूबी-हुई
मधुमास की साँसें रहेंगी
वे हमारे संग की
ऋतुराज-गाथाएँ कहेंगी
हम न होंगे
पर हमारे
स्वप्न ये मनचीत तो होंगे