भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ पत्थर के हुए / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 30 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हाथ पत्थर के हुए
हम क्या करें
यह तुम्हारी देह वासन्ती
उसे कैसे छुएँ
आँख में भी तो हमारी
वक्त के छाये धुएँ
तुम जवा की गंध हो
हम साँस में कैसे भरें
फूल होने की कथा
तुम कह रहीं
पर हमारी देह में
कितनी चिताएँ हैं दहीं
पंखुरी-सी तुम
तुम्हें कैसे चिताओं में धरें
छुवन का इतिहास
यादों में बसा
फिर रहा है इन दिनों फिर
नेह का चिट्ठीरसा
यह वसंती हवा
इसमें भला हम कैसे झरें