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तुम्हीं तुम हो / कुमार रवींद्र

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तुम्हीं-तुम हो
याकि फिर
बस चाँदनी ही चाँदनी है गीत में
 
यह तुम्हारी हँसी ने
कैसा रचा जादू अचानक
मन हुआ है
पुरूरवा औ' उर्वशी का ही कथानक
 
हँसी से
तुमने बिखेरी
वही हीरे की कनी है गीत में
 
खुशबुओं का एक टापू
उसी पर हम-तुम खड़े हैं
 देह में भी, सुनो, सजनी
नेह-वन के आंकड़े हैं
 
जो हमारे
रक्त में है
वही बरखा सावनी है गीत में
 
ये फुहारें आ रहीं जो
क्षीरसागर से यहाँ तक
इन्हीं से तो है बना
मीठी छुवन का, सखी, बानक
 
कल्पवृक्षों में
रही जो
जोत वह ही चंदनी है गीत में