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पूरा सुख है / कुमार रवींद्र

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हम-तुम बैठे नदी-घाट पर
           कहीं बज रही शहनाई
                          पूरा सुख है
 
सजनी, उधर नाव पर देखो
सूरज ने है पाल छुआ
इधर घाट पर
सुनो, आरती औ' नमाज़ का
साथ हुआ
 
सगुनचिरइया टेर रही है
            ग़ज़ल किसी ने है गाई
 
सोना बिखरा जल पर
तुमने कनखी से अचरज सिरजा
मस्जिद का गुंबद चमका
दमकी मन्दिर की इधर ध्वजा
 
सदा-सुहागिल हुईं हवाएँ
             सिंदूरी है परछाई
                      पूरा सुख है
 
टाँग रहीं सतरंगी बंदनवारें
किरणें पेड़ों पर
लगता जैसे पूरा ही माहौल
हुआ है जलसाघर
 
प्रभु की किरपा रही
         हमारी सदा-सहाई
                   पूरा सुख है