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दिन सुंदर है / कुमार रवींद्र
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दिन सुंदर है
सखी, साथ है हँसी तुम्हारी
कनखी-कनखी
तुमने सिरजी धूप-छाँव है
किसी अदेही देवा का भी
वही ठाँव है
नहा रही है
नेह-नदी में देह कुँआरी
खेला तुमने रचा हँसी से
फूल खिल गये
हिरदय को मिठबोले
साबर मंत्र मिल गये
वंशी बजी
हवाओं ने है ग़ज़ल उचारी
नीलबरन आकाश हुआ
बगिया हरियाई
घर-भर में हैं
सूरज ने छवियाँ बिखराईं
किरणों ने
गृहदेवों की आरती उतारी