भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम-लीला गान / 13 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परिछावन

प्रसंग:

द्वार-पूजा के बाद वर का परिछावन करने के लिए मिथिला की नारियाँ उत्साहित हैं।

अवध से अइलन चितचोरवा हे सखी! चलऽ बर परिछे।
बाल-बृद्ध-जुवती उठि धउरत, करि-करि के आपुस में सोरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
साजि के सिंगार सब, गहना पहिर लऽ, नीमन लहँगा-पटोरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
दही, अछत, गुर दउरा में धरि लेहु, भरि लेहु सेनुर सिन्होरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
रथ पर समधी सहित बरिअतिया, लागत बा कइ एक कड़ोरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
हाथी पर साधु सब माला लगवले, सिर चंदन कइले बाखोरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
धावत आवत, बाजा बजावत; नगर में कइले हड़होरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
अवध के लोग खखुआइल, अइलन खाये खातिर केरा-परोरवा। हे सखी! चलऽ बर परिछे।
कहत ‘भिखारी’ दुलहिन जोग दुलहा साँवर, सहबलिया गोरवा हे। हे सखी! चलऽ बर परिछे।