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राम-लीला गान / 14 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

मिथिला पहुँची बारात का वर्णन।

धन मिथिलेस कइलन मिथिला गुलजार हे। अइलन बरात साजि के अवध सरकार हे॥
रथ पर दसरथ राजा, सब सरदार हे। पालकी में रिपुहन-भरत कुमार हे॥
घोड़ा पर चढ़ि के अइलन सब असवार हे। कोटिनों जुझार बीर लेके हथियार हे॥
ऊँट गाड़ी, पैदल, बहुत बँहगीवार हे। चललन कतार बान्हि के हाथियन के हार हे॥
बाजावा करत बाटे अजब पुकार हे। सीताराम, राधाकृष्ण, गोबिन्द मुरार हे॥
उड़त निसान, बाजे ऊँट पर नगार हे। कबहूँ ना देखलीं अतना बत्ती-बरनिहार हे॥
आसा, सोटा, बलम, चॅवर, पंखा बेसुमार हे। कविजन करत कवित्त के उचार हे॥
मिललन लखन मुनि, भइल समाचार हे। राजा दसरथ जी के प्रान के आधार हे॥
देखत झरोखा चढ़ि के सब नर-नारि हे। जाइ कर लगिहन मिथिलापति का दुआर हे॥
कहत ‘भिखारी’ दया करऽ त्रिपुरारि हे। लालसा करत बादुलहा देखे के हमार हे॥