भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोरोॅ केॅ पियै छी / राधेश्याम चौधरी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राधेश्याम चौधरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
की मिललै हमरा दिल लगैला सेॅ,
दुश्मनी होय गेलै जमाना सेॅ।
घुमी रहलोॅ छियौं तोरोॅ गली मेॅ,
आबेॅ दोस्ती होय गेलोॅ छै अकेल्ला सेॅ।
तोरोॅ पता छै, हम्मेॅ वे पता छी,
आबेॅ पता मिलतौं शहनाई सेॅ।
जिंनगी रोॅ गेला मेॅ भटकी रहलोॅ छी,
अकेल्लोॅ-अकेल्लोॅ लागी रहलोॅ छी।
रोज जीयै छियै रोज मरै छियै,
आँखी मेॅ लेार आरो होठों मेॅ हँसी नै छै।
माय रोॅ आखरी दिन मिनी रहलोॅ छियै,
जहर लोरोॅ के पीवी रहलोॅ छियै।