भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करम करोॅ / राधेश्याम चौधरी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राधेश्याम चौधरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करम करोॅ फलों के चिंता नै करोॅ
धोखा जगह जगह पर छै केकरा की कहबोॅ।
करमोॅ रोॅ फोॅल मिट्ठोॅ होय छै
खटास कहियोॅ नै होय छै।
पसीना बहलोॅ नद्दी रोॅ चारोॅ जुंगा,
वहोॅ सुखी जाय छै।
लोर आरो लहूँ एक करि
आशा आरो उम्मीद जगाबै छी
मतर कि खाय लेॅ नै मिलैं
भुखलों ई सरकारी राज मेॅ आभियोॅ सुती जाय छै।
करमोॅ रोॅ सुरूज जबेॅ उगि जाय छै
कोय-नै कोय अन्न दाता मिली जाय छै।
शनि महाराज रोॅ दरबार मेॅ खिचड़ी मिली जाय छै।
खाय खिचड़ी सब्भेॅ प्राणी
मोॅन हुलसी जाय छै।