भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राम-लीला गान / 40 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 3 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रसंग:
विवाह के बाद श्रीराम-सीता को विदा कराकर जनकपुर से अवधपुरी चले जायेंगे। इससे मिथिला-वासी नर-नारी बहुत विह्वल हैं।
लेके चलि जइबऽ हो दुलहा! जनक-किशोरी।
हम कइसे रहब हो दुलहा! मिथिला अगोरी? नाहीं प्रान रहिहन हो दुलहा! सीता बिनु मोरी।
बस ना चलत बा हो दुलहा! होता बरजोरी। बिसरत नइखे हो दुलहा! स्याम, सीता गोरी।
नइखे कहे आवत हो दुलहा! अकिल बा थोरी। रचि-रचि लागल बा दुलहा! सुरत के डोरी।
रहि जा एहीजा हो दुलहा! सुनिलऽ निहोरी। कहत ‘भिखारी’ हो दुलहा! दोऊ कर जोरी॥