भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भजन-कीर्तन: कृष्ण / 6 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 3 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=भज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रसंग:
श्री कृष्णचन्द्र के जन्मोत्सव का वर्णन।
भादो के महीना-रात अष्टमी अन्हार। बनवारी हो कृष्ण जी लिहलन अवतार॥ बनवारी हो॥
डगरिन लेली कर सोना मुठी धार। बनवारी हो त्रिभुवन के काटे खातिर नार॥ बनवारी हो॥
आरती करत बाटे कंचन के थार। बनवारी हो मंगल के होत बा उचार॥ बनवारी हो॥
बाजत बधावँ शोभा देत बा दुआर। बनवारी हो हरषित नंद सरकार॥ बनवारी हो॥
जहँ-तहँ ठनकत बा तबला-सितार। बनवारी हो बनी गइलन याचक भिखार॥ बनवारी हो॥
चरण कमल बा ‘भिखारी’ का आधार। बनवारी हो कर नइया भवनिधि पार॥ बनवारी हो॥