भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये जो चिड़िया निढ़ाल बैठी है / भावना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 9 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये जो चिड़िया निढ़ाल बैठी है
लेके किसका ख्याल बैठी है
कौन-सी रूत करीब है आई
धूप पानी उबाल बैठी है
ये सदी बेहिसाब सपनों का
रोग कैसा ये पाल बैठी है
इस पड़ोसन को क्या कहूँ आखिर
कब की खुन्नस निकाल बैठी है
प्यार का रोग क्या लिया उसने
सिर को ओखल में डाल बैठी है
ऐसे डॅंसता है कोई अपना ही
जैसे विषधर को पाल बैठी है