भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आहटें सुनकर शरद की / अनीता सिंह

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:49, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आहटें सुनकर शरद की
मुस्कुराती भोर आई।

स्वर्ण-घट को शीश धरकर
थाल में रोली सजाए
कर रही श्रृंगार, हरसिंगार-
को धरणी बिछाए
पाँव आलक्तक लगाए
खिलखिलाती भोर आई।

स्वस्तिवाचन कर रहे हैं
सामध्वनि से कंठ कूजित
नवल पल्लव नव कुसुम औ
नव किरण से पंथ पूजित।
माँग कुंकुम से सजाये
दिपदिपाती भोर आई।

ओस बूंदों से सुसज्जित
दूब की हरियल अनी
रात ने नभ से बिखेरी
आज हीरे की कनी।
सरित-सर में प्राण भरकर
झिलमिलाती भोर आई।