भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कुराते हैं बस हँसी लिखकर / अनीता सिंह

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुस्कराते हैं बस हँसी लिखकर
रेत पर छोड़ दी खुशी लिखकर।

रात चुपचाप लौट जाती है
पत्ते पत्ते पे फिर नमी लिखकर।

जुगनुएँ रात को दे आईं हैं
अपने हिस्से की रोशनी लिखकर।

जिनके हिस्से में प्यास आई थी
जाम चूमे हैं तिश्नगी लिखकर।

जी उठेंगे जो मेरे मरने से
उनको आये हैं ज़िन्दगी लिखकर।

अपनी किस्मत की स्याह चादर को
ओढ़ लेते हैं चाँदनी लिखकर।

सबसे बेबस है कौन लिखना था
लौट आये हैं आदमी लिखकर।