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नोमैन्स लैंड / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

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उत्पीड़न का कोई दस्तावेज नहीं
यन्त्रणाओं का कोई दस्तावेज नहीं
हाथ लहरों के नीचे जाते हुए
एक चीख फँसी है गले में
नष्ट हो रहा है यह सभी
जो सामने है
जो तुम्हारे हाथों में है
जो तुम्हारी आँखों में है
जो तुम्हारे दिमाग में है
कोई अस्तित्व नहीं
कोई क्षण नहीं
कोई दस्तावेज नहीं
अगर तुम साथ नहीं हो
तो तुम खिलाफ हो
ताबूतों को गिनने से क्या होगा
मृतक, अँधेरे में
अपाहिज, बिस्तरों में
सड़कों पर,
व्हीलचेयर पर
रेंगते, घृणा उपजाते
बेजान हाथों से
कैसे उठाओगे इतनी बददुआएँ?
हाथ धोने पड़ेंगे
मुँह छुपाना पड़ेगा
(कबूतर या शुतुरमुर्ग)
वर्ना खराब हो जायेगी कमीज
वर्ना खराब हो जायेगी टाई
एक चीख फँसी है गले में
दोनों हाथों से पकड़ो
अपना ही गला दबाओ
दबाते चले जाओ
तुम्हें बदल जाना है
एक दिन एक शव में
तुम्हारी भी कर देंगे आँखे बंद
नहलायेगें, धुलायेंगे
तुम्हारे सड़ाँध मारने से पहले ही
कर देंगे दफन
बढ़ जायेगा धरा का बोद्य कुछ और
हवा में लहरायेगी
तुम्हारी धुली-धुली कमीज
तुम्हारी धुली-धुली टाई।