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गाय / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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हर सड़क पर गायें
धूप में पसरी हुईं
चारों ओर के वातावरण में
पूरी तरह रमी हुईं
जुगाली करतीं
टिटकारने से रास्ता-भर देती हैं
शांत-सा लगता है कुछ
लंबी काली सड़क
चुभती है अब कम
राह लगती नहीं अकेली।

कुछ खड़ीं, कुछ बैठीं
कुछ खिसकतीं धीरे-से
जैसे दिन धीमा-सा चलता हो
एकरसता गई है टूट
गाय माता कहेंगे
तो दूध पी पाएँगे
जी पाएँगे साधारण जन
अगर बची रहेंगी गायें पृथ्वी पर
आने वाले समय तक।