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नींद की खिड़की से / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल
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तुम सोये हो
खिड़की के सामने
उगा है चाँद
झक्क सफेद
गिरा रहा चाँदनी
अबाध रूप से
उठो,
फैलाओ अपनी बाँहें
खींचो अंदर
साँस भर चाँदनी
विचरो आसमान में
कोई बाधा नहीं
कोई दुःख
कोई निराशा नहीं
मिलेगा चौकीदार जागता
आग तापता
कुत्ते ऊँघते-से
एक-दूसरे को सूँघते-से।