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कृतज्ञता / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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चाहे रहो तुम समझते अपने आपको
कि इनसान बन गये
पर उनकी नजर से देखो
वो भी क्या हैवान बन गये
बस ये सोच ही
जीवन पलट देती है
राह चलते-चलते की
तकदीर उलट देती है
गिलास रहे भरा आधा
या रहे आधा खाली
है तो आधा ही
क्या करें कि भर जाये मन?
तृप्त होकर शांत हो
कर दे जिंदगी को नमन
धन्यवाद दे
कि इस जीवन को पाया
कि रहा उसका हम पर साया।