भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता का होना / आरती तिवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 15 नवम्बर 2017 का अवतरण (Sharda suman ने पिता का होना / आरती वर्मा पृष्ठ पिता का होना / आरती तिवारी पर स्थानांतरित किया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छत,जो बचाती थी
ग्रीष्म में झुलसाती धूप से
तूफानी बारिश के थपेड़ो से
सर्द हवाओं की ठिठुरन से

कभी कभी वही छत हल्की सी तक़लीफ़
कर दिया करती थी ,नज़रअंदाज
ताकि हम मज़बूत बने

हम भी आश्वस्त थे
इतनी मज़बूत छत
जिसका प्लास्टर जगमगाता था
जिसमें से रिस कर कोई ग़म
हम तक कभी नही पहुँचा
खुशियों की बेलें
आच्छादित थी,जिसके चारों ओर
ठहाकों की विंड चाईम
गुंजाती थी जीवन का राग
संस्कारों की नक्काशी
जिसके किरदार के धवल रंग को
एक आब देती थी

हम निश्चिन्त थे
इतनी मज़बूत छत के होते
जी रहे थे,मौसमों को
आनन्द के रंगों से सराबोर थे
भूले हुए हर संकट की आहट

भूल गए ये भी
हर मज़बूत छत की भी
होती है एक मियाद
एक अच्छे रखरखाव और देखभाल की
मरम्मत के बाद भी

और भला कौन होता है तैयार
इस छत के एक दिन न रहने का अंदेशा पाले

यूँ ही एक दिन ढह जाती है
ऐसी मज़बूत छत
और हम रह जाते हैं अवाक

चुनौतियों का सामना करने
छत के बिना ही