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बचे केवल वही / इंदुशेखर तत्पुरुष

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जड़ से उखड़ गए बहुत से पेड़
इस प्रभंजन में
अपने रूप-रस-गंध पर मुग्ध
जो थे इठलाते-झूमते
धराशायी हो गये वे
बचे केवल वही
जिनके मूलांकुरों ने रात-दिन जागकर
धरती की अंधेरी परतों में घुसकर
किया था अथक संघर्ष।

उन श्रमसाधकों को तो
यह भी नहीं पता कि किस तरह
आते हैं
दिन-रात-ऋतुएं-मौसम।