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हमारे आने की खबर सुनकर भी... / विवेक चतुर्वेदी
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कहीं भी जनम जाते हैं बच्चे
रेल में,झुग्गी में,खेत पर,कारखानों में...
जिंदगी की जिद में बच्चे
गर्भ की गुफा के
बंद शिला द्वार को धकेल देते हैं
बच्चे जबर्दस्ती, उपेक्षा,शोषण
और हिंसा की स्याही से रंगे
अखबारों में लिपट कर
हमारे सामने आते हैं,
पर उनके बदन पर
वो बदरंग चस्पा नहीं होता
बच्चे विस्मय भरी आँखों से
हमारी आँखों में देखते हैं
वो अपने
नन्हें हाथों से हमको
झिंझोड़ते हैं -तुमने बुहारी क्यों नहीं
ये दुनिया...
हमारे आने की खबर सुनकर भी।