भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कामकाजी औरत की आँख में / विवेक चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 23 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
टूटते खपरैल से झाँकता है नीला आसमान
वहाँ से धागा निकाल बुन रही है औरत एक कालीन
आँगन में बिछी है लाल मुरम
उससे लाल बटन बनाकर
औरत टाँक रही है बच्चे के अँगरखे में
दरकती दीवारों पर ऊग रहा है जो
पीपल का पौधा
उधर से हरा रंग खींच चढ़ा रही है औरत
लिफाफे के कागज पर
समय का चक्र सबसे
तेज गति से घूम रहा है औरत की सिलाई मशीन में
और आज का सबसे सुंदर और सजीला सपना
दिख रहा है इस कामकाजी
औरत की आँख में।