भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर / विमल गुरुङ

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:44, 1 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिक्दार लागिरहेछ
समाचारपत्र हेर्न बाहिर निस्कने सुरसारमा छु
आज दिनभरि कोठामै बसियो
पढियो
सुतियो
कोरियो सयौं पटक सलाई
धुम्धुम्ती आज कोठामै बसियो
एकान्तसंग मितेरी गाँस्न निकै सार्‍हो परिरहेछ
दिक्दार लागिरहेछ
कोहि छैन मित्र ।