भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शोर को हम गीत में बदलें / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 2 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शोर को
हम गीत में बदलें।

इन निर्रथक
शब्द-ढूहों का
खुरदरापन हो घटे कुछ तो
उमस से
दम घोंटते दिन थे
सुखद लम्हों में बँटे कुछ तो

चुप्पियों का
यह विषैलापन
लयों के नवनीत में बदले।

क्यों डुबाएँ
यन्त्र-कोलाहल
इस धरा-गन्धर्व के स्वर को
ज्योति-कन्याओ
उतर नभ से
रश्मियों की रागिनी भर दो

दृष्टियों का
यह कसैलापन
स्निग्धामय प्रीत में बदलें।