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मगर इस दरमियाँ जो इश्क़ है, आदाब मेरा है / आनंद खत्री

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फ़ना तक सूफ़ियत जो जी गया, अलक़ाब मेरा है
हज़ारों रात की आवारगी, महताब, मेरा है

महकती है जो तनहाई,करार-ए-दिल की बाहों में
लिये चहरा किसी का हो, मगर असबाब मेरा है

हज़ारों तन बदन मिलते हैं, लाखों बार बिछड़े भी
मगर इस दरमियाँ जो इश्क़ है, आदाब मेरा है

बना करते हैं जब रिश्ते, गज़ब लाते हैं गहराई
जहाँ तुम साँस लेती हो वहाँ, पायाब मेरा है

तुम्हारी शोखियाँ हर बार जो, बारिश में भीगी थीं
सुनो हर बूँद की, उस कैफ़ियत में, ताब मेरा है

फक़त रानाइयो में संग तेरे जो भी था, वो हो
नसों में जो नशा बसता है, वो शादाब मेरा है

बहुत अहमक़, अनाड़ी है, जो नामो-दम पे जीता है
हमेशा शाद है, बेनाम वो, बेताब मेरा है