भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक साड़ी में लपेट लिया / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 6 दिसम्बर 2017 का अवतरण
एक साड़ी में लपेट लिया
पूरी शाम को तुमने
हम सब बारी बारी से आते थे
तुम्हारे पास कभी छूने- चिपकने
कभी तुम्हारे स्पर्श को।
उधड़न जो तुम्हारे
ब्लाउज और बदन के बीच
से मिठास छलकाती है
जज़्बात जगती है और बेमर्म
मेरी नज़रों को चिकोटती रहती है।
नीचे से झलकते तुम्हारे
कागज़ीपाँवमें लिपटी
नाज़ुक सी बिछिया, पायल
गले में कंचन, कुण्डल
और सुर्ख रंग का श्रृंगार।
ना जाने खुद से ज़्यादा क्या दे दें तुमको?